Thursday 21 December 2017

रिसाइकिल

तमाम औरतों के लिए रिसाईकल की प्रक्रिया है रात
हर छत से गुप्त नदी का एक सिरा जुडा है जिससे
जैसे देह से आत्मा ,
मौसम खुद को भ्रमित पाते हैं
कि हर रात इन अदृश्य नदियों में उठने वाले ज्वार से आतंकित हैं वो
उनके द्रवित कर देने वाले चीत्कार से चकित
उलझनपूर्ण हो वे समझ नहीं पाते कि ये किस किस्म का सैलाब है
जो हरहरा कर हर रात सब कुछ भिगो देता है
और हर सुबह फिर से सब कुछ वही ....वैसा ही वापस
समझ नहीं पाते की हर रात फूलों पर
ये ढेरों नमक कहाँ से आ जाता है
जो सुबह की रौशनी के साथ ओस सा परिलक्षित होता है
कि हर रात हवा यूँ बिफरी हुयी सी क्यों घूमती है
और दिन भर उसमे फिर वही अतिरिक्त उल्लास कैसे
हर सुबह सूरज की मुस्कान इस कदर अतिरिक्त चमकीली कैसे हो जाती है
अमलतासों गुलमोहरों कचनारों और बसंत मालती
इन सब के बीच वो कड़ी क्या है जो उन्हें रात भर
कुछ ज़र्द बनाये रखती है
पर दिन में फिर वही अतिरिक्त आभा उन पर भी,
उसे नहीं पता
कि तमाम अकेली औरतें
जो संख्या में सितारों से जियादा हैं
रात भर बिस्तर के एक कोने से
छतों के एक हिस्से से
रसोई के खटर पटर से
दिन भर के कुछ लम्हों से भीगे हुए
अपने अपने आँचल के कोरों को कसकर निचोड़ती हैं
निचोड़ती रहती हैं तब तक
जब तक कि उनके सारे दुःख बह नहीं जाते
जब तक कि उनका सारा नमक गल नहीं जाता
कि जब तक वो एक बार फिर
इसी प्रक्रिया के लिए खुद को मुफीद नहीं बना लेतीं
इस तरह वो खुद को धीरे धीरे मुक्त करती हैं
धो पोंछ कर सुचिक्कन करतीं हैं
चुपचाप ख़ामोशी से
बिना किसी को जताए ,
ये सारा आलम जिस वक्त नींद के तप्त आगोश में सो रहा होता है
उस वक्त ये औरतें ही होती हैं
जो परिवार की दी हुयी पीड़ा का ज़हर उगलकर उसे खुशनुमा बनाने का जतन करती हैं
ये औरतें ही होती हैं जो असंख्य अपमानों को भी सींचकर उर्वर बना लेती हैं
उस पर मुस्कानों और खुशियों के फूल खिला देती हैं
ये हर सुबह जो आप मौसम का भीगापन महसूस करते हैं
वो दरअसल इन औरतों की रात भर की जुगत का उपसंहार होता है
उनका प्यार होता है
अपने परिवार अपने परिवेश अपनी मिटटी से ,
अगली बार अपने आस पास की ख़ूबसूरती और जिन्दादिली का कुछ श्रेय
इन औरतों को देना न भूलें
कि ये औरतें कोई भी हो सकती हैं
आपकी माँ बहन बेटी पत्नी या फिर केवल मित्र भर ही |

No comments:

Post a Comment