Friday 21 March 2014

tishngee

अंधेरों में तिश्नगी फूट-फूट पड़ती है
किसी साजिश की तरह
अँधेरा कम नहीं होता कभी
रचता रहता है षड्यंत्र हर बार नए से ,

वो हर बार सफल
मै असफल हो जाती हूँ
वो बढ़ता रहता है
मै घटती रहती हूँ
अंजुरी से फिसलकर
समन्दर हो जाने के लिए ,

कि किसी की हार यहाँ समन्दर सी भी हो सकती है
गंभीर --गहरी --वेगवान-----
अनियंत्रित और खारी
जिस पर कभी फूल नहीं उगते !!

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