Monday 27 November 2017

माँ

हवा की मुट्ठी में बंध कर आया है वो मौसम
कि जिसमें भरा करती थी माँ स्वाद और चमक
कि जिसमे भरती थी वो खुशियाँ
और लचक,
घर के आंगन में सरसों की गमक
घर के अंदर से चंदन की महक
माँ की आरती हवन घंटियों की मीठी खनक
रचा करती थी संसार अदभुत वो
कि प्रसादी लाचीदाने से
माँ के ऊंगलियों की महक आती थी माथे छुआ कर खाना
मुस्कुराकर वो कहती थी
वो कहती थी बुटुल प्यार से मुझे
भर लेती थी बाँहों में दुलार से मुझे
मेरी शैतानियां वो हँसकर टाल देती थी
मेरी बदमाशियां पर आँखों से गुस्साती थी
न जाने कहाँ से किस्से कहानियों की पोटली वो लाती थी
गुड्डे गुङियों के शादी की दावत करवाती थी,
ये मौसम मेरी याद का सितारा है
ये मौसम मेरी माँ को भी तो प्यारा है
कि जो वो होती
तो आज भी घर से मेरे
मंदिर के होने की सी श्रद्धा आती
कि जो वो होती
तो आज भी घर से मेरे
मेरे नाम की गूंजती सदा आती।

2 comments:

  1. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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    1. हार्दिक आभार आपका

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