Tuesday, 16 January 2018

कवितायेँ

१-बचपने का सौंधापन लौट आया 
गुच्छेवाले ढेरों फूलों की रंगत के साथ
मकोय का अद्भुत स्वाद लिए
मुट्ठी में भर लेने पर
रच-बस जाती थी जिसकी अजब सी कडवी मनमोहक खुशबू 
समूची हथेली में ,
भुट्टे के इस मादक मौसम में अंगीठियां शबाब पर हैं
दानों का तडकना बेचैनियों की इन्तेहाँ है
जिद्द का जूनून भी
और उसकी महक मानो मासूम सी
बस ताज़ी-ताज़ी फूटी यौवन गंध ,
इस बार मिट्टी में दरारें नहीं पड़ीं
बस सुन्दर फूल खिले पसरे आलस से भरे
नीले बैंगनी नारंगी जामुनी और न जाने कितने रंगों को साधे
दहेलिया लिली गुलाब और हाँ ज़ीनिया को भी मोहपाश में बांधे
नन्हें किलकते होठों की हंसी से ,
इस बार तितलियाँ लुभा रही हैं ललचा रही हैं
इन्द्रधनुषी छटा बिखरा रही हैं
पीछे भागने पकड़ने और उनके पंखों को सहलाने
सिहरने का गज़ब कौतुक जगा रही हैं
फिर से बच्चा बना रही हैं ,
कभी-कभी कुछ यादें कुछ लम्हे कोई हंसी एक आवाज़
बहुत होती है
मिचमिचाई आँखों में रेशमी चमक भरने को
गहराती झुर्रियों में खुशबूदार दमक भरने को ,
बचपन सलीके का भ्रम है
समझदारी में कुछ कम है
पर मासूमियत की झिल्ली में मुस्कुराता
शरारती क्रंदन है ,
आह बचपन
आहा बचपन !!
2-मुट्ठी भर सहमतियों का संबल लिए
समय लिखता रहा विद्रोह
चुनरिया सतह पर
धुँआ उठता रहा चीखते रहे लोग
बर्दाश्त फिर भी चुप रहा ,
दुस्साहसी समय ने इस बार लिखी मृत्यु
नन्हें पैरों के कोमल तलवों पर
सहमतियाँ क्रुद्ध होगयीं
विरुद्ध हो गयीं
बर्दाश्त मुखर हो उठा ,
बारिशें इस बार सुनहरी हैं
टिकी रहती हैं दूब के मुहाने पर
पूरे दिन तक
सलज्ज ,
,
सूरज बच्चे की हंसी सा किलक रहा है
लगातार इस आस में
कि कभी तो
नन्हें पैर तब्दील होंगे
फलक पर हौसलों का परचम होकर !!

३-भूख
आरक्षित नहीं होती
रक्षित भी नहीं
धार्मिक या नास्तिक भी नहीं
जातिसूचक या उम्र सूचक भी नहीं,
बस पेट के खालीपन की खुजली
जो दिमाग तक पहुंच आगाह करती है
कि वक्त हो चला
मिल जाये तो ठीक
वरना
उठता है तल्ख मरोड़ फिर जलजला
और ज्वाला की तीव्रता
जो एकदम भक्क से दिमाग में पैठ जाती है
नियंत्रित करती है सोच को
उसकी दिशा को,
फिर अनजाने ही कोई सभ्य
कभी सुसंस्कृत भी
मासूम सा इंसां
जो नहीं जानता
पेट पर गीला कपड़ा बांधने की कला
या गीली मिट्टी का चमत्कार
बन जाता है चोर
अनायास ही,
तथाकथित संपन्न व अधिकृत भीङ के बीच
आधिकारिक नामकरण सहित
चोर.... रोटी चोर।।

४-मन की मत सुन 
मन झूठा है,
जिद्द है पक्की
जिद्द है सच्ची 
जिद्द किससे पर,
वो जो लम्हा बीत गया
या
वो क्षण फिर जो आना है,
टीस प्रबल है
पीर दोगुनी,
दोनों चुप पर
अपने -अपने परकोटों में,
प्रेम है यूँ भी
साथी मेरे।।

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