पीली सी आँखों में खाली शाम पडी थी
अलसाई मुरझाई सी ,
बिना किसी सपने को थामे ,
अलसाई मुरझाई सी ,
बिना किसी सपने को थामे ,
उतर रहा था एक परिंदा धीरे-धीरे
मौसम को मुट्ठी में लेकर मुस्काता सा
हुआ सुनहरा शर्बत जैसा ,
मौसम को मुट्ठी में लेकर मुस्काता सा
हुआ सुनहरा शर्बत जैसा ,
फ़ैल रहा हर ओर था कोई शोर
कि जैसे हो मंजीरा
या ढोलक की थाप हो कोई
या फिर कोई सारंगी हो ,
मदमाती सी गूँज उठी हर सांस
कि जैसे आस हो कोई
पर्वत पीछे प्रेम को भींचे मधुर किलकती
रास हो कोई ,
कि जैसे हो मंजीरा
या ढोलक की थाप हो कोई
या फिर कोई सारंगी हो ,
मदमाती सी गूँज उठी हर सांस
कि जैसे आस हो कोई
पर्वत पीछे प्रेम को भींचे मधुर किलकती
रास हो कोई ,
लेकर अंगडाई फिर शाम हुयी मतवाली
बाहों में भर ढेरों कंगन पैरों में छनकाती पायल
चलती आलता संग लिए नाखूनों पर
सपनो के दामन को खुद में भींच लिया
सींच लिया फिर सूखा पौधा
पडा था जो बरसों से बस यूँ ही एकाकी ,
बाहों में भर ढेरों कंगन पैरों में छनकाती पायल
चलती आलता संग लिए नाखूनों पर
सपनो के दामन को खुद में भींच लिया
सींच लिया फिर सूखा पौधा
पडा था जो बरसों से बस यूँ ही एकाकी ,
फूल लगे हैं खिलने उसमे सरसों हो या रजनीगंधा
कुछ गुलाब है कुछ है गेंदा
कुछ थोड़े जो सूख गए थे बरसों पहले
उनमे भी अब प्यास जगी है जीवन की
उनमे भी अब आस जगी है प्रियतम की ,
कुछ गुलाब है कुछ है गेंदा
कुछ थोड़े जो सूख गए थे बरसों पहले
उनमे भी अब प्यास जगी है जीवन की
उनमे भी अब आस जगी है प्रियतम की ,
कि लगी बिखरने खुशबू अब है
लगी बरसने प्रीत भी होकर मीत की जैसे हो दीवानी
सपने भी अब फूट रहे हैं निर्झर सरिता के सोतों से
निर्मल होकर कोमल होकर जीवित होकर
हँसते-हंसते !!
लगी बरसने प्रीत भी होकर मीत की जैसे हो दीवानी
सपने भी अब फूट रहे हैं निर्झर सरिता के सोतों से
निर्मल होकर कोमल होकर जीवित होकर
हँसते-हंसते !!
No comments:
Post a Comment