१-प्रेम यूँ
कि जैसे बांसुरी पर होंठ पहले
यूँ भी कुछ
जैसे कि पहली आंच कोई
मन जलाये
हो कि जैसे कोई स्वस्तिक लाल रंग में
और खङे हों
हम वहां सर को झुकाये
आँख मूँदे।।
2-कल नींद की नीली रौशनी में इक ख्वाब लिखा
कि जैसे बांसुरी पर होंठ पहले
यूँ भी कुछ
जैसे कि पहली आंच कोई
मन जलाये
हो कि जैसे कोई स्वस्तिक लाल रंग में
और खङे हों
हम वहां सर को झुकाये
आँख मूँदे।।
2-कल नींद की नीली रौशनी में इक ख्वाब लिखा
करवटों ने ढेरों रंग भरे
और इंद्रधनुष सा कर दिया उसे,
और इंद्रधनुष सा कर दिया उसे,
आधी बारिश और आधे उमस के बीच
वो कुछ नमक हो उठा
जीभ पर जिसका स्वाद छालों सा लगा,
वो कुछ नमक हो उठा
जीभ पर जिसका स्वाद छालों सा लगा,
नीलेपन, इंद्रधनुष और उमस से भरे नमक ने
लटपटाई बारिश से भीगी रात को गर्म
बेहद गर्म और सुंदर कर दिया
ज्यों घी से चुपङी राख
या फिर देह का मन,
लटपटाई बारिश से भीगी रात को गर्म
बेहद गर्म और सुंदर कर दिया
ज्यों घी से चुपङी राख
या फिर देह का मन,
आज की सुबह थोड़ी जख्मी
पर मीठी व खुशगवार थी
हर रोज की तरह।।
३-रात चाँद संग झूले पर थी बादल के,
पर मीठी व खुशगवार थी
हर रोज की तरह।।
३-रात चाँद संग झूले पर थी बादल के,
तेज हवा सर - सर बहती थी
कानों में ख्वाहिश कहती थी
जब तक धङकन छम से थमकर ठहर न गयी,
कानों में ख्वाहिश कहती थी
जब तक धङकन छम से थमकर ठहर न गयी,
बेसुध होकर आसमान ने तान लगाई
लीन हुए मंदिर चौबारे
कांपे सारे ताल -तलैया
बहक उठा फिर मन भी जब तक सहर न हुई,
लीन हुए मंदिर चौबारे
कांपे सारे ताल -तलैया
बहक उठा फिर मन भी जब तक सहर न हुई,
जोगी बैठा देर तलक मनकों को गुनता
कुछ -कुछ सुनता
नीम तले की भर गहराई
जब भी समाई सीने में कुछ लहर सी हुई,
कुछ -कुछ सुनता
नीम तले की भर गहराई
जब भी समाई सीने में कुछ लहर सी हुई,
रात चाँद संग झूले पर थी बादल के मै
निर्मल,निश्छल काँधे पर गुनगुनापन लिए।।
४-रात चाँद संग झूले पर थी बादल के,
निर्मल,निश्छल काँधे पर गुनगुनापन लिए।।
४-रात चाँद संग झूले पर थी बादल के,
तेज हवा सर - सर बहती थी
कानों में ख्वाहिश कहती थी
जब तक धङकन छम से थमकर ठहर न गयी,
कानों में ख्वाहिश कहती थी
जब तक धङकन छम से थमकर ठहर न गयी,
बेसुध होकर आसमान ने तान लगाई
लीन हुए मंदिर चौबारे
कांपे सारे ताल -तलैया
बहक उठा फिर मन भी जब तक सहर न हुई,
लीन हुए मंदिर चौबारे
कांपे सारे ताल -तलैया
बहक उठा फिर मन भी जब तक सहर न हुई,
जोगी बैठा देर तलक मनकों को गुनता
कुछ -कुछ सुनता
नीम तले की भर गहराई
जब भी समाई सीने में कुछ लहर सी हुई,
कुछ -कुछ सुनता
नीम तले की भर गहराई
जब भी समाई सीने में कुछ लहर सी हुई,
रात चाँद संग झूले पर थी बादल के मै
निर्मल,निश्छल काँधे पर गुनगुनापन लिए।।
निर्मल,निश्छल काँधे पर गुनगुनापन लिए।।
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