Tuesday, 9 January 2018

रात

रात कजरौटे सी
जिसको खोलते ही नजर का टीका लगे
आँख कजरारी सजे
भर स्वप्न ढेरों,
रात सहचर सी सितारों को लिये
जैसे कि सूनी खाट पर
मोती सजे अनगिनत
विचलित प्रेम के,
और रात ही ममता सी
जैसे चंद्रमा भर अंक में शिशु हो सुकोमल
भरे छाती तब भी दुलराया करें
अंतिम प्रहर तक,
रात तेरे रूप कितने शेष।

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