Tuesday, 16 January 2018

कवितायेँ

१-सर्दियों की अतीत होती एक उदास शाम 
उसने सौंप दी अपनी बंद मुट्ठी
मेरी हथेलियों कों,
तमाम किस्म के अहसास 
मीठे गर्म आसव से हुये
बहते रंध्रों की नदी में,
बेहिसाब झुनझुनी पसरी
टूटकर फागुन बरसा
मन में
देह में
आत्मा में,
इस तरह
जाते हुए मौसम ने दिया मुझे
प्रेम।।


2-शाम की पीठ जख्मी 
पीले गुलाबी दर्द की गठरी लदी
घिसट कर आगे बढ़ी
गिर गई
फिर रात के आंचर में देखो,
खींचने आई हवा
बजा सीटी
नाचती
बरगद की चोटी पकङ उसको हिलाती
कान में बंसहट बजाती,
शाम पर अब रात के आंचर में थी
लुढकी पड़ी
सीने की गरमी ओढकर
मदमस्त सी
जख्म पर लासा लगा
और कोर पकङे,
नींद से जब शाम जागी
सुबह उसकी आत्मा था मुस्कुराता
तपतपाता
शाम से फिर सुबह और फिर शाम के
इस चक्र में
बंदी सफर की
वो तो बस कुछ आहटों का लेख थी।।
३-प्रेम गुलाबी हरा दिल लिए
करता है इकरार फकत,
दर्द बदलकर नशा हो लिया
बेमतलब ही यार फकत,
टुकड़ा टुकड़ा सांसें मेरी
पैमाने से गुजरी थीं,
पैमाना भी इश्क हो गया
जाने कैसे यार फकत।।
४- उङेलकर नफरतें 
गाङ दो जमीनों में गहरे
सङने दो
खूब सङने दो
इतना कि एक दिन मिट जाये 
उसकी कडवाहट
उसका छिछोरापन
सारी काई भी,
मिट्टी का अरक
कर दे पावन उसकी आत्मा को
और फिर वहाँ हम बोयें
गुलाब चमेली चंपा
गुडहल
करें अर्पित
समस्त मानव जाति को
समभाव से।।

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