Tuesday, 16 January 2018

कवितायेँ

१-उदास हूँ 
कि मेरी उदासियों को तुम भरते हो
अपनी अनुपस्थिति से
खुशबुओं से बहकते हो मेरे आस पास
पूरी आवारगी के साथ 
जब तक मैं कुछ और उदास नहीं हो जाती
जैसे खामोश वीणा,
उठा लाते हो एक बुरांश की डाल
जाने कहाँ से
थोङे अमलतास
फिर रच देते हो मुझे
रचते रहते हो मेरी उदासियों को
और गुलमोहर की दो फुनगियां भी
जिन्हें टकराकर हम जांचते थे
एक दूजे के प्रेम का ठहराव
और उनका देर तक स्पंदित होना
मैं हार जाती थी तब भी,
एक पूरे जंगल जितना वीराना
मेरे आस पास पसर जाता है
जब तुम्हारी शर्मीली यादों को
पगडंडियों और एकांत की जरूरत होती है
कि तुम मेरे कानों में चुपचाप कुछ बुदबुदा सको
कह सको अपना प्रेम शायद
या फिर वक्त की बेवफाई का हवाला ही दे सको,
उदास हूँ
कि मैं तुम्हारे मन के कैनवस पर
लाल गुङहलों सा रंग दिया जाना चाहती हूँ
चाहती हूँ कि कभी किसी रोज तुम मन में झांको
और पोत दो उसको कोरी हथेलियों से
मैं तुम्हारी हथेलियों की कच्ची गरमाहट हो जाऊँगी
तुम्हारे भीतर की एक अतिरिक्त ऊर्जा
जो तुम्हें जब तब सिझाती रहेगी
मुझे भी
कि लौ बुझती नहीं आँधियों से कभी
जिंदा रहती है जिंदा रखती है
बाद मरने के भी।

2-तुम गिरो 
जितना भी चाहो
तुम्हारा गिरना नजर नहीं आता,
नजर तो आता है बस 
बूँदों का गिरना
फूलों का गिरना
झरने का गिरना
कि जी चाहता है
इन्हें अपलक निहारा करूँ,
इन सबका गिरना सुंदर है
और तुम्हारा गिरना असुंदर,
इसलिए
तुम गिरो
जितना भी चाहो
कि तुम्हारा गिरना नजर नहीं आता
मनुष्य।।


३-सनाया 
चलो कहीं दूर चले
रास्ते पर तहरीर लिखें,
हवाओं को बांध मुट्ठी मुट्ठी 
फेफड़ों में खूब भरें
फिर उङेल दें
एक दूसरे की पीठ पर
चुहल करते,
चिड़ियों की तरह उङें
पंखों में थोड़ा आसमान भरें
कर दें आसमानी सूरज को
कि सूरज को थोड़ा बादल करें
मुझे बारिशें पसंद हैं,
रास्ते की मिट्टी पर
एक दूजे का नाम लिखें
कुरेदकर लकड़ी से
फिर धप से कूदें बगल में
धूल उङा दें उसपर
जोर जोर से ताली बजाकर
फिर खूब हँसें,
चलो न
चलो न सनाया
कहीं दूर चलें
जिंदगी को जरा और जियें।।


४-

No comments:

Post a Comment