Sunday 28 January 2018

मन

रात में चुपके से भिगो देता है कोई
मन,
गिल्ली डंडे के खेल में माहिर थी
पर उस रोज पिट्ठू खेलते खेलते नज़र खो गयी 
अंतिम टुकड़ा मुट्ठी से नीचे गिर गया
नज़र खोयी हुयी है अब तक
सपनो में उस नज़र से पूरी गृहस्थी सजाई
सुन्दर सुन्दर रंगोली ,फूलों के गमले ,महावर ,नेल पोलिश तक
एक रोज बरम बाबा की मनौती भी मांगी ,
फिर जाना पड़ा दूसरे शहर
वहां भी गृहस्थी सजाई
सुन्दर सुन्दर रंगोली ,महावर, नेल पोलिश
इस बार गमले में कांटे वाले फूल उगाये
जब जब फूल खिला ,नेल पोलिश लगी ,महावर रचा
नज़र में रेत आ पडी
उसी पुराने शहर की रेत
सुना था पिट्ठू का वो आख़िरी टुकड़ा किसी तुलसी चौरे का तल है
बरम बाबा विचरते हैं शायद आस पास
असीस का जल लेकर |

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