जड़ों को सौंप कर पीड़ा ह्रदय की
उसी के अब सखी प्रहरी हुये हैं ,
उसी के अब सखी प्रहरी हुये हैं ,
समय का भान किंचित हो रहा है
सजग आह्वान गुंजित हो रहा है,
सजग आह्वान गुंजित हो रहा है,
कि जब फूटेगा यौवन
तभी आयेंगे मधुकर
तभी हम चुन सकेंगे
कि जो पीड़ा हरेंगे,
तभी आयेंगे मधुकर
तभी हम चुन सकेंगे
कि जो पीड़ा हरेंगे,
कि तब तक चेतना जागृत रहेगी
और तब तक नींद भी बाधित रहेगी ,
और तब तक नींद भी बाधित रहेगी ,
युगों... ये जान लो तुम।
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