Wednesday, 22 January 2020

अंजाम

तुम अगर प्रस्तुत नहीं लज्जा हनन को
मूढ हो फिर
और तनिक सी धर्मद्रोही भी सखी,
सिर झुकाये हो खड़ी यदि
कसे जिह्वा पर हो ताला
तब ही तुम रह पाओगी स्त्री सजीव ,
नोंचने को सब यहाँ तैयार बैठे
खींचने हर श्वांस अब हर देह से ऐयार बैठे
तब भी वो जी लेंगे जीवन
हंस संकेंगे रह सकेंगे
वो सहज स्वीकार्य हैं पर तुम नहीं
कि तुम अपावन हो चुकी हो
तुम पतित हो तुम ही कुत्सित
हो भले तुम रक्तरंजित,
दुधमुहीं भी हैं जहाँ पर मात्र भोग्या
बस जरा सा रस लिया था
डर से फिर रेता गला था
हो गया तो हो गया इसमें बुरा क्या
आहह ईश्वर... हो कहीं तुम?
ना सखी कोई नहीं है
खुद ही हो अब सज्ज रण लडना ही होगा
ये सबक उनकी समझ मढना ही होगा
कर प्रहार उनको ये चेतावनी दें
अब भी गर वो नहीं संभले
तब उन्हें मरना ही होगा
हो भले अंजाम कुछ।

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