Wednesday, 22 January 2020

औरतों के सुख

औरतों के हिस्से हमेशा दुःख ही नहीं होते
सुखों की पोटली भी साथ लिए चलती हैं ये बस दिखाती नहीं
ये जानती हैं कि इससे कहीं फर्क नहीं पड़ता
इनको कोई नहीं समझता तो फिर
तो इस तरह से ये कस्तूरी इनका स्वाभिमान हो जाती है ,
चलते चलते चींटियों से पाँव बचा लेना
आंचल की अठन्नी को गुल्लक में डालना
भोरे उठकर सूरज को सबसे पहले निहारना
उनींदी पलकों में सपने का छूट गया हिस्सा सहेजना
और ये सोचकर मुस्कुराना कि ये अगली नींद का उधार है
इनका सुख ,
खुद के साथ एक कप गरम चाय की फुर्सत
मनचाही किताब के कुछ पन्ने
एक सुंदर रूमानी कविता की दिल छू लेने वाली पंक्तियाँ
अक्सर मुकेश पर कभी कभी रफ़ी या किशोर या फिर आबिदा परवीन को सुनती उधडती सिलती रहतीं ये
कि इनकी आँखों की हलकी नमी और सबसे छुपकर होठों के कोरों पर उपजी उदास मुस्कान
इनका सुख ,
बारिश का एकांत और अतीत के जंगल में भटकती ये
कि जब कोई बीरबहूटी का सा अक्स भी झलके
ये दुपट्टा निचोड़ देती हैं
मिटटी से मन जोड़ लेती हैं
दराजों को उलटते पुलटते गर मिल जाए वो पुरानी डायरी
तो खुरचकर छुपाये गए एक नाम के साथ ये खुद भी छिप जाती हैं
कि पल भर को बढ़ी धडकन और खनकती देह
इनका सुख ,
इनके सुंदर सुघड़ जीवन के पीछे न जाने कितने ताले कितनी कुंजियाँ हैं
और कितनी बेड़ियाँ
ये उनका ज़िक्र नहीं करतीं
कुरेदकर पूछे जाने पर भी हंसकर टाल देती हैं
कि ये अपनी अना की किर्चियों का गीला कपडा हैं
इन्हें हमेशा मुस्कुराते ,ठहाके लगाते, औरतों की आजादी पर बात करते या कई बार मजलिसों में मुख्य अतिथि के तौर पर भी तकरीरें करते देखा सुना जा सकता है
ये समझदारी से सब कुछ बैलेंस किये रखती हैं
कि असल जीवन के स्याह पर दमकता इनका सुफेद चमकीला आवरण
इनका सुख ,
इनका सुख
कई बार इनके मकान की दरारों में उग आया नन्हां पीपल होता है
जिसे बस एक दिन तक की मोहलत दे अगले रोज ये दांत दबा आँखें बंद कर धीरे से उखाड़ फेंकती हैं
कि घर की दीवारें और छत सलामत रहें
कि घर की सुन्दरता औए उसका सम्मान सलामत रहे ,
औरतें ऐसे ही अनगिनत सुखों से भरी एक मोहक झील हैं |

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