Wednesday 22 January 2020

प्रेम

चाह गझ्झिन
आंख मूंदे है प्रतीक्षारत यहाँ
बज रही वीणा जहाँ ,
जब अलंकृत चंद्रमा मनुहार से दुलरा उठे
लजा उठे
और छनन छन छन छनन छन छन
बज उठे पायल प्रफुल्लित मलय की
और जब सितारे नृत्य में हो मगन रचते राग हों
अनुराग हों,
ठीक बिलकुल उस घड़ी ही
तुम भी आना प्रिय मेरे
केसर के जैसे रंग में होकर घुले
और छलक जाना देह भर होकर सुवासित प्राणमन
कि जी उठूं मैं
जी उठूं और प्रीत भर भर अंजुरी इस सृष्टि को प्रतिदान दूं
प्रेम मे सीझी हुयी मैं प्रेम को सम्मान दूं।

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