Wednesday 22 January 2020

ख्वाहिश

मुझे दो इजाजत
कि पाबंदियां मै सारी तोड़ दूं
हवा का रुख मोड़ दूं
ज़मीं आसमां और आसमां को ज़मीन कर दूं ,
मुझे दो इजाजत
कि मै अपनी देह का मालिकाना हक पाऊं
अपनी मर्जी की साँसें लूं
उन्मुक्त उड़ान भरूं ,
मुझे दो इजाजत
कि तमाम चरित्रहीनता के दाग तुम्हें सौंप दूं
गलीजताओं को रौंद दूं
औरतों की हर सियाही सुफेद कर दूं ,
मुझे दो इजाजत
कि मै हर दोयमपने से इनकार कर सकूं
सड़ी गली मान्यताओं को तोड़ मरोड़ सकूं
धर्म के सभी कर्तव्य सिर्फ तुम्हारे लिए सुनिश्चित कर सकूं ,
मुझे दो इजाजत
कि मै अपनी बेडौल कुरूपता में भी सर्वाधिक मोहक लगूं
अपने पहनावे की आंकलन कर्ता स्वयं बनूँ
तुम्हारी दृष्टि में छिपी वर्जना को इनकार कर दूं ,
मुझे दो इजाजत
कि तुम्हारी बेलगाम इच्छाओं का अस्वीकार्य बनूँ
तुम्हारे दमन का कठोर प्रतिकार बनूँ
अपनी मुस्कान का मनचाहा आकार बनूँ ,
मुझे दो इजाजत
कि ये जो चूड़ी बिंदी सिन्दूर की अनिवार्यता का ज्ञान है
इसे धता बता सकूं
इसकी सारी वैज्ञानिकता की जरूरियात तुम्हारे लिए मुक़र्रर कर सकू
तुम्हारी सुरक्षा कर सकूं ,
मै लिखना चाहती हूँ नफरतों पर प्रेम
मै हथियारों को पुष्पों में बदल देना चाहती हूँ
मै उगाना चाहती हूँ बंजर मिटटी में अनाज
मै देना चाहती हूँ ढेरों ढेर बच्चों को उनकी छत
मै हर लाचारी को मुस्कान बना देना चाहती हूँ
मै महिला आश्रमों को बंद कर देना चाहती हूँ
अनाथालयों पर जड़ देना चाहती हूँ सबसे मजबूत ताला
और सभी वृद्धाश्रमों को फिर से एक बड़ा घर बना देना चाहती हूँ
मै हवा की चाल पर सवार विस्तृत आसमाँ की पूरी उंचाई माप लेना चाहती हूँ ,
मुझे इजाजत दो
और न भी दो तो कोई बात नहीं
कि इससे फर्क नहीं पड़ता
अब |

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