सोचा था पहली बारिश हो तो कविता लिखूं
कुछ दिल को उकेरुं
मिट्टी के पहले स्पर्श के कंपन में शब्द भरूं
पर मुमकिन नहीं हुआ
यादें नाराज हैं शायद,
कुछ दिल को उकेरुं
मिट्टी के पहले स्पर्श के कंपन में शब्द भरूं
पर मुमकिन नहीं हुआ
यादें नाराज हैं शायद,
यूं उम्र के एक लंबे हिस्से का बयान सरल भी तो नहीं
मौसमों की बेरूखी के लिए कोई स्याही नहीं होती
फिर मन का दुख या सुख बिलकुल ठीक ठीक कैसे कहा जा सकता है
और कहा भी जाय तो क्या ठीक बिलकुल उसी तरह समझा भी जा सकता है
अजब मुसीबत,
मौसमों की बेरूखी के लिए कोई स्याही नहीं होती
फिर मन का दुख या सुख बिलकुल ठीक ठीक कैसे कहा जा सकता है
और कहा भी जाय तो क्या ठीक बिलकुल उसी तरह समझा भी जा सकता है
अजब मुसीबत,
पुराने शहर की सडकों का कुछ कर्ज बाकी है शायद
जब तब जहन में कौंधती रहती हैं
अंतिम बार कह तो दिया था विदा फिर क्या है ऐसा जो छूटा रह गया
आधा रह गया
कि जिसके पूरे होने को वो बार बार चली आती है
उसके पास भी तो दुनिया के सबसे पुरकशिशश उन दो कदमों की थाप है जो मुझे प्रिय है ,
जब तब जहन में कौंधती रहती हैं
अंतिम बार कह तो दिया था विदा फिर क्या है ऐसा जो छूटा रह गया
आधा रह गया
कि जिसके पूरे होने को वो बार बार चली आती है
उसके पास भी तो दुनिया के सबसे पुरकशिशश उन दो कदमों की थाप है जो मुझे प्रिय है ,
फिर उन लम्हों का क्या
जो मेरी आंखें हो जाती थीं और भीगी रहती थीं मीठी मीठी तकलीफ से
और वो लम्हे भी जो धड़कते रहते थे देह में घड़ी की टिक टिक के साथ
कि जिन लम्हों में न होना जीवन में नहीं होने जैसा है,
जो मेरी आंखें हो जाती थीं और भीगी रहती थीं मीठी मीठी तकलीफ से
और वो लम्हे भी जो धड़कते रहते थे देह में घड़ी की टिक टिक के साथ
कि जिन लम्हों में न होना जीवन में नहीं होने जैसा है,
नमक चुटकी भर हो तो ही ठीक
इश्क भी
अति ठीक नहीं जानते बूझते भी पाले हुये हैं
जिद्द ये भी कि वहाँ और कोई नहीं
कोई उस हद तक हो भी तो नहीं सकता
इतना बेवफा जिस पर पूरी एक उम्र वारी जा सके,
इश्क भी
अति ठीक नहीं जानते बूझते भी पाले हुये हैं
जिद्द ये भी कि वहाँ और कोई नहीं
कोई उस हद तक हो भी तो नहीं सकता
इतना बेवफा जिस पर पूरी एक उम्र वारी जा सके,
तो फिर भला कवितायें कैसे लिखी जायें
कैसे लिखी जा सकती हैं........
कैसे लिखी जा सकती हैं........
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