Wednesday, 22 January 2020

बेटियां

मां के बिना बेटियाँ सहरा की दरख्त हैं
खासकर अकेली बेटियाँ,
इस कदर मौन मानो सितार
इस कदर एकांत से भरी मानो सुरंग ,
निरंतर बर्दाश्त से सख्त जान ये
रेतीली आंधियों में जीना सीख लेती हैं
मन को सीना सीख लेती हैं ,
स्मृतियों के जल से सीझी
ये पीड़ा में भी फूल खिला सकती हैं
मन के ताप से बादलों को पिघला सकती हैं
और तो और ये समूचा ब्रह्मांड खुद में समो सकती हैं
और मुस्कुरा सकती हैं,
इनकी आँखों में झांकना मना है
कुछ पड जाता है
जिसे निकालते निकालते ये एक पूरा समंदर सोख लेती हैं
बिना जताये ये खुद को नमक कर लेती हैं
इनका मन डूबती कश्ती सा हो जाता है,
ये सबका कहा मान जाती हैं
जिद्द, मनुहार और लाड दुलार की अपनी आदतों को
सुधार लेती हैं
ये कभी कोई कंधा नहीं तलाशतीं क्षण भर के चैन को
ये अपने दुख और शिकायतों को किसी से नहीं कहतीं
चुपचाप पी जाती हैं,
अकेली बेटियाँ सीपियों सी हो जाती हैं।

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