Wednesday, 22 January 2020

दर्द

जिस एक रोज
आंसुओं को ताप से
बादल में बदल देने का हुनर आ गया
उस रोज दर्द को जीना आ गया ,
जिस एक रोज
सीने में समंदर के
नमक चखने का हुनर आ गया
उस रोज दर्द को जीना आ गया,
कह सकते हैं यूं भी कि कोई तितली
फडफडाती है जब मेरी सांसों में
मेरा एकांत जख्मी हो जाता है
मेरा हर मौन बोझिल हो जाता है
पर सुकून है कि अब मुझे सैलाबों को
सहेजने का हुनर आ गया
और उस रोज फिर दर्द को जीना आ गया,
कि जिस एक रोज
बवंडर को हवाओं में
तकसीम करने का हुनर आ गया
उस रोज दर्द को जीना आ गया,
इस तरह जीना बिलाशक आसान नहीं है
पर जिंदगी भी तो मरने का सामान नहीं है।

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