Wednesday, 22 January 2020

दुःख

बंद आँखों में कुछ सपने बुने
गुडहल के फूलों में जो चुपचाप मसले गये
कापियां फाडी गयीं पन्ने दर पन्ने
और मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पडा है
इसे गुनगुनाते हुये रोने
और प्रेम के कच्ची पीडा वाले वो दिन लौटा दो
सब कसमें वादे लौटा दो
लौटा दो उन शहतूती शरबतों से कसैले यौवन वाले लंबे दिन उससे भी लंबी रातें
और पिट्ठुओं को जोडकर दिलों में हलचल मचाने वाले पल भी लौटा दो ,
ये एक रोज किसी ने सपने में मांगा ईश्वर से
अगले ही पल उन दोनों की आंखों में आंसू थे।

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