मेरे दिल के इक हिस्से में धुंध जमी है
इक हिस्सा रुहों का है
और इक हिस्से में लंबे गलियारे की सी गूंज सुनाई पडती है
वक्त वक्त पर हर हिस्सा चौकस होता है ,
इक हिस्सा रुहों का है
और इक हिस्से में लंबे गलियारे की सी गूंज सुनाई पडती है
वक्त वक्त पर हर हिस्सा चौकस होता है ,
कभी कभी जब किसी पुरानी पुस्तक से खत फटे हुये पीले मुर्झाये पत्ते से गिरने लगते हैं शब्द बिखर जाते हैं मेरी पलकों पर
कि खुली हथेली से मैं उनको ढांप लिया करती हूँ फिर
उनका रिसना हौले हौले अपने भीतर चतुराई से मैं बहने देती हूँ फिर,
कि खुली हथेली से मैं उनको ढांप लिया करती हूँ फिर
उनका रिसना हौले हौले अपने भीतर चतुराई से मैं बहने देती हूँ फिर,
दूर समंदर तक फैले इन रेतकणों में चमकीले से आँसू मेरे धूप से मिलकर लरज उठे हैं
मेरा नीलापन ही मानो खुद में साधे कोई योगी सा छुपकर बैठा है
वो भी शायद रीता है
और एक खलिश को थाम साधना करता है,
मेरा नीलापन ही मानो खुद में साधे कोई योगी सा छुपकर बैठा है
वो भी शायद रीता है
और एक खलिश को थाम साधना करता है,
छोटी बच्ची का सा अक्सर ओढ कौतूहल मैं मारी मारी फिरती हूँ
तनहाई की राह रोक बातें करती हूँ
सन्नाटा जो नस नस का बाशिंदा है उससे लडती हूँ ,
तनहाई की राह रोक बातें करती हूँ
सन्नाटा जो नस नस का बाशिंदा है उससे लडती हूँ ,
मेरा दिल है नील समंदर, पूरी धरती, पूरा अंबर।
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