Tuesday, 21 January 2020

मेरा दिल

मेरे दिल के इक हिस्से में धुंध जमी है
इक हिस्सा रुहों का है
और इक हिस्से में लंबे गलियारे की सी गूंज सुनाई पडती है
वक्त वक्त पर हर हिस्सा चौकस होता है ,
कभी कभी जब किसी पुरानी पुस्तक से खत फटे हुये पीले मुर्झाये पत्ते से गिरने लगते हैं शब्द बिखर जाते हैं मेरी पलकों पर
कि खुली हथेली से मैं उनको ढांप लिया करती हूँ फिर
उनका रिसना हौले हौले अपने भीतर चतुराई से मैं बहने देती हूँ फिर,
दूर समंदर तक फैले इन रेतकणों में चमकीले से आँसू मेरे धूप से मिलकर लरज उठे हैं
मेरा नीलापन ही मानो खुद में साधे कोई योगी सा छुपकर बैठा है
वो भी शायद रीता है
और एक खलिश को थाम साधना करता है,
छोटी बच्ची का सा अक्सर ओढ कौतूहल मैं मारी मारी फिरती हूँ
तनहाई की राह रोक बातें करती हूँ
सन्नाटा जो नस नस का बाशिंदा है उससे लडती हूँ ,
मेरा दिल है नील समंदर, पूरी धरती, पूरा अंबर।

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