Wednesday, 22 January 2020

शाम

शाम कुम्हलाई हुयी सी थक के लौटी है
धूप ने जमकर छकाया
पवन ने भी कर शरारत है खिझाया
पाश में भर चूम माथा गोद में उसको लिटाऊँ
स्वप्न का पलना बनाऊँ
और सितारों को धरुं फिर देह उसके
मंद शीतल स्पर्श से पलकें मुदें
हौले हौले चांदनी उस में घुले
शाम शिशु सी सो सके फिर |

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