शाम कुम्हलाई हुयी सी थक के लौटी है
धूप ने जमकर छकाया
पवन ने भी कर शरारत है खिझाया
पाश में भर चूम माथा गोद में उसको लिटाऊँ
स्वप्न का पलना बनाऊँ
और सितारों को धरुं फिर देह उसके
मंद शीतल स्पर्श से पलकें मुदें
हौले हौले चांदनी उस में घुले
शाम शिशु सी सो सके फिर |
धूप ने जमकर छकाया
पवन ने भी कर शरारत है खिझाया
पाश में भर चूम माथा गोद में उसको लिटाऊँ
स्वप्न का पलना बनाऊँ
और सितारों को धरुं फिर देह उसके
मंद शीतल स्पर्श से पलकें मुदें
हौले हौले चांदनी उस में घुले
शाम शिशु सी सो सके फिर |
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