Tuesday, 21 January 2020

बचपन

चुटकी भर ताप स्मृतियों को पिघला देता है ,
फिरोजी साटन पर गुलाबी जोड़ लहंगा सिला तुमने
फिर चांदी के से गोटे को टांक दिया रातों रात
फिरोजी ओढ़नी सितारों से सजाई गयी थी
शरारे और गरारे के बाद यही लहंगा मुझे सबसे प्रिय था
मांग टीका या चूडियाँ पहनाते वक्त निहाल होती जा रही थी तुम मुझ पर ओढ़नी मेरे सिर पर रख दोनों हथेलियों में मेरा चेहरा भरकर चूम लिया था तुमने मेरा माथा
भाई ने अपनी गुल्लक तोड़ी थी इसके लिए
तुम्हारी और भाई की बॉन्डिंग अलग थी
मै निरी शैतान
कि मेरा इतराना देख तुम और भाई बरबस साथ ही हंस पड़ते
तुम मेरी हर जिद्द पर मुस्कुरा देतीं
याद नहीं आता कि तुमने कभी झिड़का हो मुझे
तब भी नहीं जब तुम्हारी बिलकुल नई साड़ी अपनी गुडिया के लिए क़तर दी थी मैंने
या जब बोन चाइना का पूरा सेट गुस्से से धराशायी कर दिया था ,
ये झरनों के से सुख एक दिन चट्टान हो जाते हैं
नदी सी यादें निखालिस नमक
विदा होना इतना मुश्किल नहीं गर लौट आने की उम्मीद हो
पर ऐसा भी क्या हुआ था कि तुमने ये उम्मीद भी छीन ली मुझसे
गलत किया तुमने
सुकून में ढेरों छोटी छोटी मछलियाँ तैरने लगी हैं
कुतरनें लगी हैं यादों के लम्स
ज़ब्त इन दो बरसों का हासिल है मेरा ,
न जाने कहाँ कहाँ कितना कितना हो तुम मेरे अंदर
कई बार मै खुद को तुम लगने लगती हूँ
अपनी हथेली में तुम्हें थामे अपनी दूसरी हथेली सहलाती रहती हूँ
तुम सा धीरज धरना बाकी है अभी
कि जिस रोज वो आ गया उस रोज शायद पीड़ामुक्त हो सकूं
देखना तुम कि जब किसी रोज मिलोगी तो खुद सा ही पाओगी मुझे ,
बचपन मेरा समृद्ध था कि तुम थीं
आश्वस्ति था कि तुम थीं
बिंदास बेशुमार था कि तुम थीं
किस्से-कहानियां थीं की तुम थीं
बारिश थी कि तुम थीं
लज्ज़त थी कि तुम थीं
अब तुम नहीं हो तो ये सब भी नहीं है
हक भी नहीं उछाह भी नहीं ,
तुम्हारा जाना एक ऐसे एकांत और सन्नाटे का रचा जाना है जिसका हर गोशा सीला हुआ है
जहाँ हर तरफ अधूरापन है
पर जहाँ होना फिर भी राहत है बनिस्बत कहीं और होने के |

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