Wednesday 22 January 2020

इंतज़ार

तुम्हारे खतों का इंतजार सालों रहा,
लगा कभी तो उनमें गुलाबों की पंखुडियां भेजोगे
या शायद कुछ रातों का रंग
कभी बादल का एक छोटा टुकड़ा ही भेज दो शायद
वैसे सर्दियों की थोड़ी कुनकुनी गरमाहट भी भेज सकते थे,
खत कोरे भी होते तो पढ लेती
उनमें मनचाहा भर लेती,
दुख को राहत और उदासियों को खुशी कहना मुझे खूब आता है ,
बारिश वाष्पीकरण की एक स्वाभाविक प्रक्रिया मात्र नहीं होती साथी।

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