Tuesday, 21 January 2020

पानी

कौन कहता है पानी नहीं है कि जहाँ देखिये अब तो वहीं है
सिवाय आँखों के
आँखों का पानी या तो सूख जाता है या मर जाता है तीसरा कोई विकल्प नहीं
वैसे पानी हो तो भी दिक्कत न हो तो भी दिक्कत
मौत कभी गीली तो कभी सूखी हो जाती है
कभी जलाने को सूखी ज़मीन नहीं मिलती कभी तर्पण को पानी ,
पानी हर हाल में एक कारण तो है ही
संतुलन बना रहता है
प्रकृति का भी राजनीती का भी
वो भी मुफ्त तो फिर और क्या चाहिए ,
पानी की विडंबना तो देखिये
कभी दूध के साथ नाली में बह जाता है कभी मदिरा के साथ हलक में उतर जाता है
पर जब प्यास लगी हो तो पोखरों में भी मिटटी के साथ मिलता है
खैर मिलता तो है
अब कितनी आबादी क्रोनिक डीहाइड्रेशन से मर गयी और कितने सोते-सोते बह गए
कौन रखता है उसका हिसाब किताब
सरकार को दूसरे काम भी तो हैं ,
कई बार पानी अरबों लील लेता है
और फाइलें भीगती तक नहीं
पानी के ऊपर टिकी उम्मीद भी पानी ही हो जाती है
फिर सैलाबों का तो कहना ही क्या
बहती गंगा में हाथ धोना एक प्रसिद्द मुहावरा है ,
पानी की कमी के विरुद्ध बोलना गलत है
और सैलाबों पर चीखना चिल्लाना तो और भी गलत ,
पर ये बंद नहीं होना चाहिए कि शोर उठे तो सही
आसमां इतना भी दूर नहीं |

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