Tuesday, 21 January 2020

स्त्रियाँ

ये जो हर बारिश छतों खिडकियों और बरामदों से झरती बूंदों को निहारती रहती हैं
ये प्रेम में डूबी उदास आँखों वाली स्त्रियाँ बड़े कच्चे मन और पक्के हौसलों की होती हैं
ये अपना सब कुछ उड़ेलकर एक घर को प्रेम से भर देती हैं
खुद खाली हो जाती हैं
ये रिश्तों को सहेजती हैं और खुद टूट जाती हैं
बिना किसी उम्मीद के ये सपनो से छलकती रहती हैं
इनकी उदासी पर कई गीत लिखे गए पर उदासियाँ गुनगुनाहट में नहीं बदल सकीं
इनके प्रेम पर महाकाव्य रचे गए फिर भी इनका प्रेम अधूरा ही रहा
ये बारिश को मन में उतार लेती हैं
इनका मन नदी हो जाता है
ये उनमे आंसू घोल देती हैं मन समंदर हो जाता है
ये नमी से खेलने का हुनर खूब जानती हैं
ये अपने बच्चों को कागज़ की नाव तैराना सिखाती हैं और अपने ज़ख्मों को तिकोना कर देती हैं
ये बच्चों के साथ मिलकर पानी में छप छप करती हैं और अतीत से लड़ पड़ती हैं
भीगे पांवों वाली स्त्रियाँ मन से सूखी होती हैं
कि उनका ये सूखापन उनके रगों तक फैले नमक की खेती है
सावन में भीगना अतीत को अभिसिक्त करना है
किसी को ऋण मुक्त करना भी
कि जिसकी एक असहमति वो खाली कमरा हो गयी जहाँ हरहराकर रोना मुहब्बत की रस्म है
और जहाँ का एक कोना पीली रौशनी और अँधेरे का मिला जुला आरामगाह है
और जिसकी जमीन सिलवटों से भरी पड़ी है
और बिना किसी शिकायत के प्रेम यहाँ खड़िया है ,
बारिश निहारती खामोश स्त्रियों को मुहब्बत से देखिये
ये टूटी हुयी हैं |

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