जब मौसम अकेला करे कि झरती बूंदें मन तक न पहुंचेंं
जब निरंतर थका देने वाली व्यस्तता कुछ करने की कोशिशों तक में न बदले
जब कुछ कहना भी चलो रहने दो फिर कभी हो जाये
जब बंद पलकों के पीछे की गति स्मृतियों का भंवर हो
जब अंधेरा और एकांत जरूरी लगे
जब फूलों की सुंदरता की बजाय कांटों और टहनियों पर नजर फिसले
जब रूमानियत फिजूल लगे
और जब हर आवाज विरक्त करे ,
जब निरंतर थका देने वाली व्यस्तता कुछ करने की कोशिशों तक में न बदले
जब कुछ कहना भी चलो रहने दो फिर कभी हो जाये
जब बंद पलकों के पीछे की गति स्मृतियों का भंवर हो
जब अंधेरा और एकांत जरूरी लगे
जब फूलों की सुंदरता की बजाय कांटों और टहनियों पर नजर फिसले
जब रूमानियत फिजूल लगे
और जब हर आवाज विरक्त करे ,
तब
हां बिलकुल ठीक तब ही एक कविता लिखी जानी चाहिए
उदासी से बिना कोई रंज पाले।
हां बिलकुल ठीक तब ही एक कविता लिखी जानी चाहिए
उदासी से बिना कोई रंज पाले।
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