Wednesday 22 January 2020

सियासत

सियासत क्रूर है
कि जय बोलो वरना गद्दार कहे जाओगे
चारण बनो वरना बेकार कहे जाओगे
राजा ने नियम तय कर दिये हैं,
पर डर कैसा हुजूर
हम तो सच ही कहेंगे
भले बेवक्त मरेंगे
और साथ ले जायेंगे कलंक का टोकरा ,
सियासत रोटियों, नौकरियों, झोपडियों के लिए नहीं होती अब
सियासत होती है ईश्वर की सत्ता को चुनौती के लिए
वो दिन दूर नहीं जब एक महान देश होगा
चापलूसों, अंधभक्तों, बहरों, और अंधो का रीढविहीन देश इसके साथ ही दे दी जायेगी तिलांजलि उन्हें
अपने लहू से जिन्होंने इस देश की बंजर मिट्टी को उर्वर किया
कडी मेहनत से सपनों की फसल उगायी
उम्मीद की कि आने वाले वक्त में
उनका ये देश उनकी ये मातृभूमि महानता के शिखर को स्पर्श करेगी,
आज ठीक इसी वक्त कि जब उनको भुला दिया गया है
हम उनसे माफी मांगते हैं।

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