Wednesday, 22 January 2020

सजदा

मायूसी उसके आँखों की अक्सर एक किस्सा कहती है
वो इश्क़ में डूबी लडकी है हर वक्त जो गुमसुम रहती है
आहट जब भी हो चौखट पर वो चौंक चौंक सी जाती है
हर सुबह सवेरे बगिया में फिर ओस सी नम हो जाती है,
एक साथी था बचपन में जो कि अरसा पहले रूठ गया
कितना मीठा था साझापन पर छूट गया सो छूट गया
वो जाते जाते लौटा था पर जरा ठिठक फिर चला गया
जीवन की आपाधापी में ये रिश्ता शायद टूट गया,
पर कुछ तो है जो चुभता है पर क्या है उसको नहीं पता
दिन रात बेकसी कैसी है जब उसकी कोई नहीं खता
वो मारी मारी फिरती है इस कमरे से उस आँगन तक
या खुदा ये कैसी किस्मत है की है तुमने जो उसे अता,
सूनी रातों में अक्सर वो छत पर तहरीरें लिखती है
मन के पन्नों पर तारों से वो दर्द ए आसमां रचती है
वीणा के मद्धिम सुर जैसी उसकी सिसकी भी भाती है
ये पीड़ यार की नेमत है जब भीगे सुर में गाती है,
सब कहते हैं दीवानी है ना जाने क्या कुछ करती है
बस खुद से ही बातें करती खुद में ही खोयी रहती है
पर नहीं जानता कोई कि वो बचपन की शहजादी है
इक शहजादे के इश्क़ में जो हर लम्हा सज्दा करती है,
इंतेहां हो या इंकार हो अब
मेरा यार ही रब मेरा यार ही रब।

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