Wednesday, 22 January 2020

इश्क

सिगरेट से मुक्त हुये छल्ले
नहीं ढूंढते जरा सी भी स्पेस खुद के लिये
बस विलीन हो जाते हैं अनंत में
निस्सीम होकर ,
जैसे निस्सीम होता है मन
इश्क में।
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कि भर बाजू में थाम लियो मोहे
मैं टूटी पतवार
संग घुलूं तो घुलती जाऊं
जैसे संगम धार
पिया जी।

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