Wednesday 22 January 2020

प्रकृति

एक दिन
हम अपनी सांसों के लिए धूल पर निर्भर होंगे
मजबूत फेफड़ों के साथ
शीतलता के लिए पसीने पर
कि सूर्य अपनी विकट ज्वाला हमें सहज ही परोसेगा
कंक्रीट के जंगलों में घिरे हम आधी रात होने का इंतजार करेंगे
कि मिट्टी में लोट पोट देह का तापमान सामान्य कर सकें
बूंद बूंद जल पोखरों तालाबों से छानेंगे तब तक
जब तक वो सूख न जायें
या जब तक हम मर न जायें
भूख नहीं लगा करेगी तब कि भूख से ईश्वर हमें बचा लेगा ,
हम जंगल कटने देंगे
धरती को जलने देंगे
हम सत्ता को चुनेंगे
हम ताकत को चुनेंगे
और एक दिन चुक जायेंगे,
प्रकृति और ईश्वर हमेशा दयालु नहीं होते।

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