कभी कभी कुछ यूँ होता है कि अचानक ही कोई एक घटना याद आ जाए जो अतीत में खींच ले जाए और कुछ पलों के लिए आप उसमे डूब जाएँ ...ये सुख भी हो सकता है और पीड़ा भी और कभी कभी दोनों |
तब मै 5th में थी ....पापा का ट्रांसफर हो चुका था और क्योंकि सेशन के बीच में नहीं जा सकते थे तो हम सब यानि मम्मी , भईया और मैं चुर्क में ही रहते थे ...पापा वीक एंड्स में आते फिर चले जाते ...मुझे बड़ा बुरा लगता ...मै उनके साथ जाने कि जिद्द करती ...कई बार चुपके से उनके सूटकेस में अपने भी कपडे रख देती और कई बार ये भी होता कि उन्हें बिना बताये जाना पड़ता क्योंकि मै बेतरह जिद्द करने और रोने लगती थी ....फिर मम्मी और भईया खूब समझाते ,मनाते तब मै शांत होती ...उसी वक्त का किस्सा है ये ...फ़िल्में क्लब में परदे पर हुआ करती थीं ...खुले आसमान के नीचे ...बस ये कि उस वक्त फ़िल्में हमारे सपनो की दुनिया होती थी जिसमे तकरीबन तीन घंटे हम डूबते उतराते डुबकियाँ लगाते उनमे ही खोये रहते थे ...दीवानगी का जो दौर उस वक्त था वो आजकल के बच्चे सोच भी नहीं सकते ..खैर अब मूल किस्से पर ....एक फिल्म आई थी साजन बिना सुहागन ...नूतन ,श्रीराम लागू ,राजेंद्र कुमार और जिस करैक्टर ने मुझे सबसे ज्यादा लुभाया वो था बुलबुल का जिसे बाल कलाकार के तौर पर पद्मिनी कोल्हापुरे ने निभाया था ...संक्षेप में कहानी कुछ इस तरह कि एक बीमारी से श्रीराम लागू कि मृत्यु हो जाती है जो पद्मिनी के पिता बने हैं ....क्योंकि बेटियों को पिता से बहुत लगाव होता है तो माँ बनी नूतन उनसे ये बात छिपाती हैं ....शायद नीलू फुले इस फिल्म में विलेन बने हैं जो इस बात के लिए नूतन को लगातार ब्लैकमेल करते हैं और इसी तरह ये कहानी आगे बढ़ती है सभी भावुक मसालों के साथ .....इसी फिल्म का एक गीत है ...मधुबन खुशबू देता है ...सागर सावन देता है ...जीना उसका जीना है जो औरों को जीवन देता है ......ये मुझे बहुत अच्छा लगा और मै इसे पूरा वक्त गुनगुनाती रही ....मम्मी मुझे देखकर मुस्कुरा रही थीं ...फिर हंसकर बोलीं की बहुत पसंद आया तुमको ...और मै चहकती हुयी बोली कि हाँ और मम्मी पता है जैसे बुलबुल अपने पापा को प्यार करती है न वैसे ही मै भी करती हूँ ...ये सुनते ही मम्मी कुछ नहीं बोलीं और चली गयीं ...मुझे लगा मम्मी ने शायद ध्यान नहीं दिया ...मै कूदते फांदते फिर उनके उनके पास पहुंची ..फिर यही दोहराया मम्मी ने फिर टाल दिया ...इसी तरह दो-तीन बार हुआ ...फिर भईया ने टोका कि ठीक है ..मम्मी ने सुन लिया न ...पर मुझे चैन नहीं कि मम्मी ने कुछ रियेक्ट क्यों नहीं किया ...ऐसे लग रहा था जैसे पेट में कुछ उबल रहा है कि जब तक मम्मी हंसकर कुछ कह नहीं देतीं तब तक ऐसे जैसे मेरी बात की कोई वैल्यू ही नहीं ..और ये मुझसे कैसे सहन होता तो मै उनके आस पास फुदकती रही ....अंतिम चांस लेने का idea आया और मैंने एक बार फिर ये बात दोहराई ...फिर मम्मी ने थोडा सख्त होकर तेज़ आवाज़ में कहा कि सुन लिया न ..क्यों पीछे पड़ी हो ...भईया ने कहा तो समझ नहीं आया ....ओह्ह्ह ...मेरी तो घोर बेईज्ज़ती ....एक तो पापा नहीं वहां ...दुसरे मेरे बात की कोई वैल्यू ही नहीं और तीसरे डांट भी पड गयी ...अब तो बस एक ही चारा था कि मुंह फुला के अपने कमरे में बिस्तर पर बैठकर रोयें तो वही किया और पापा से लगातार शिकायत भी करते रहे कि कोई मुझे प्यार ही नहीं करता ...आप क्यों नहीं मुझे अपने साथ ले जाते ब्ला ब्ला ....भईया कुछ देर तो सुनते रहे फिर मुस्कुराते हुए बोले हो गया ? अब चुप हो जाओ ......ये तो घनघोर बेईज्जती ....फिर मम्मी आयीं ...मनाई ..बहुत देर तक मनाती रहीं और उस रात मै उनके ही साथ सोई तब जाकर शांति मिली ....अगले दिन से सब नार्मल .......
ये यादें भी न ......न जाने कब कहाँ कैसे दस्तक दे दे और आप उसमे खो जाएँ क्योंकि अतीत कभी लौटकर नहीं आता ...जो चले जाते हैं वो लौटकर कभी नहीं आते ...माएं खासकर .....जबकि सबसे प्यारी ,सबसे मोहक सबसे दुलारी स्मृतियाँ इन्हीं के साथ जुडी होती हैं |कभी कभी खूब फफककर रोने का मन करता है पर रो नहीं पाती कि अब दुःख को साधना आ गया है ....
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