Wednesday, 22 January 2020

इल्जाम

हाँ सच है कि इल्जामों में अग्नि है ,
ये भी सच है कि इल्जाम मई के पहाड़ हैं
या कभी कभी आर्कटिक के विस्तृत धवल पठार ,
इल्जामो में कुछ थोड़ी वेदना भी हो सकती है
थोड़ी यातना भी
यूँ इल्जाम जीत की चाह है
और हार का डर
कई बार इल्जाम विशुद्ध दुःख भर है
कह देने और कहकर मुक्त होने की एक प्रक्रिया
और इल्जाम एक लंबा मौन भी है
इल्जाम सुख और दुःख के बीच डोलती कश्ती में खिल्ले की एक तेज़ चोट है
इल्जाम दिनों का सन्नाटा है तो रातों में बिस्तर की सिलवट
इल्जाम ख़त्म होने की उम्मीद में ठहरा इंतज़ार है
इल्जाम आस्था से अलगाव है तो कुछ करने और न करने की निरंतर जिद्द भी ,
इल्जाम मुरझाये हुए फूलों का किताबों में छुपा होना भी है
तो इल्जाम अलमारी में रखी वो जस की तस पडी इत्र की शीशी भी है
कई बार इल्जाम डायरी के सबसे पिछले पन्ने पर खुरचा हुआ कोई नाम हो सकता है
तो कभी प्रेम में लिखी गयी कुछ पंक्तियों की बिखरी स्याही भी
इल्जाम तो वो एक रुमाल भी है जो कैंची से चिंदी चिंदी कर दिए जाने पर भी लेडीज रुमाल में गठियाया होता है
और इल्जाम वो एक बिलकुल नापसंद चोकलेट है जो बार बार मंगाकर खाई जाती है
इल्जाम दुपट्टों के कोरों में रुका हुआ नमक है
तो इल्जाम सिगरेट के छल्लों की लगातार सनक भी
इल्जाम पर्दों को थामे पक्की ज़मीन पर उभरे अंगूठों के गहरे ज़ख्म हैं
तो इल्जाम पीछे पलटकर न देखने की अकड़ भी ,
इल्जाम नफरत है ,दुःख है ,टीस है ,जिद्द है बदला है आक्रोश है
और भी पता नहीं क्या क्या है
तो साहेबान इल्जामों को सब्र की कसौटी पर कसिये और फिर चुन लीजिये अपना अपना फ्लेवर ,
मैंने मुहब्बत चुनी है
कि वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
इल्जाम किसी और के सर आये तो अच्छा |

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