रात्रि के बंदी क्षणों को मुक्त कर
नभ धरा की चेतना अभिषिक्त कर
कौन ये वीणा को झंकृत कर रहा
आत्मा अपनी सदा को रिक्त कर ,
नभ धरा की चेतना अभिषिक्त कर
कौन ये वीणा को झंकृत कर रहा
आत्मा अपनी सदा को रिक्त कर ,
भोर की पहली किरण सम्मान का प्रतिदान देगी
उल्लासित हो कर्म हो गर्वित यही वरदान देगी ,
उल्लासित हो कर्म हो गर्वित यही वरदान देगी ,
पक्षियों का गान गुंजित हो रहा
मृदुल लय से पवन सज्जित हो रहा
पुष्प की आराधना कर भाव विह्वल
भ्रमर किंचित संकुचित अब हो रहा ,
मृदुल लय से पवन सज्जित हो रहा
पुष्प की आराधना कर भाव विह्वल
भ्रमर किंचित संकुचित अब हो रहा ,
प्रकृति निर्मल सजल होकर विनत मुग्धा हुयी है
राग कण होकर निशा बरसी सहज राधा हुयी है ,
राग कण होकर निशा बरसी सहज राधा हुयी है ,
अश्रु भर भर अंजुरी अर्पण करूँ
द्वार मंगल गान और वंदन करूँ
हे सखी , जो था अनिश्चित घट गया
किस तरह अब और मन चन्दन करूँ ,
द्वार मंगल गान और वंदन करूँ
हे सखी , जो था अनिश्चित घट गया
किस तरह अब और मन चन्दन करूँ ,
प्रीत रस सरिता असीमित कोष है
यदि न मानव पान कर पाए तो किसका दोष है |
यदि न मानव पान कर पाए तो किसका दोष है |
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