Wednesday, 22 January 2020

अभिव्यक्ति

जब हवा में मद घुला तब कौन था वहां
किसने रची हवा और खुशबू की आवारगी और उनमें गढ़ा प्रेम
कौन है जो कह देना चाहता है अपनी प्रेयसी या प्रेमी से अपनी हर बात इशारे में
कौन है जो करता है ये उम्मीद कि वो खुद ही सब समझ जाए
कि जो सामना नहीं कर सकता उस दिव्य अलौकिक पल का जब प्रेम है तुमसे ये सुनकर दृष्टि छलछला उठे
जो देह में उठती मीठी मरोड़ महसूस कर भी व्यक्त न कर सके
जो बासंती हरारत की यातना सहकर भी कुछ कह न सके
जो आतुर हो विलक्षणता की हद तक पर नियंत्रित रहे
जो यूँ ही दर बदर फिरे दीवानावार पर पास आकर पलकें चूम न सके ,
झांसे में मत आना उसके
कि प्रेम में अभिव्यक्ति जैसे होने का यकीन
और इस यकीन का होना जरूरी है
प्रेम में कह देना जरूरी है |

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