जब हवा में मद घुला तब कौन था वहां
किसने रची हवा और खुशबू की आवारगी और उनमें गढ़ा प्रेम
कौन है जो कह देना चाहता है अपनी प्रेयसी या प्रेमी से अपनी हर बात इशारे में
कौन है जो करता है ये उम्मीद कि वो खुद ही सब समझ जाए
कि जो सामना नहीं कर सकता उस दिव्य अलौकिक पल का जब प्रेम है तुमसे ये सुनकर दृष्टि छलछला उठे
जो देह में उठती मीठी मरोड़ महसूस कर भी व्यक्त न कर सके
जो बासंती हरारत की यातना सहकर भी कुछ कह न सके
जो आतुर हो विलक्षणता की हद तक पर नियंत्रित रहे
जो यूँ ही दर बदर फिरे दीवानावार पर पास आकर पलकें चूम न सके ,
किसने रची हवा और खुशबू की आवारगी और उनमें गढ़ा प्रेम
कौन है जो कह देना चाहता है अपनी प्रेयसी या प्रेमी से अपनी हर बात इशारे में
कौन है जो करता है ये उम्मीद कि वो खुद ही सब समझ जाए
कि जो सामना नहीं कर सकता उस दिव्य अलौकिक पल का जब प्रेम है तुमसे ये सुनकर दृष्टि छलछला उठे
जो देह में उठती मीठी मरोड़ महसूस कर भी व्यक्त न कर सके
जो बासंती हरारत की यातना सहकर भी कुछ कह न सके
जो आतुर हो विलक्षणता की हद तक पर नियंत्रित रहे
जो यूँ ही दर बदर फिरे दीवानावार पर पास आकर पलकें चूम न सके ,
झांसे में मत आना उसके
कि प्रेम में अभिव्यक्ति जैसे होने का यकीन
और इस यकीन का होना जरूरी है
प्रेम में कह देना जरूरी है |
कि प्रेम में अभिव्यक्ति जैसे होने का यकीन
और इस यकीन का होना जरूरी है
प्रेम में कह देना जरूरी है |
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