तुम थिर हो प्रिय जैसे पर्वत
मैं बहती नदिया धारा हूँ
तुम हो मानो वटवृक्ष अडिग
मै पवन मृदुल आवारा हूँ,
मैं बहती नदिया धारा हूँ
तुम हो मानो वटवृक्ष अडिग
मै पवन मृदुल आवारा हूँ,
तब मिलन भला संभव कैसे हो
कैसे हो फिर प्रेम प्रीत....
कैसे हो फिर प्रेम प्रीत....
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