Wednesday, 22 January 2020

वक्त

कसकर बंधी मुट्ठियों से भी वक्त फिसल जाता है
रास्ता ढूँढना आता है उसे
वक्त चालाक है कि धीमे नहीं पडता
कि उसे पता है धीमे पड़ते ही उसे दबोच लिया जाएगा
धीमें पड़ते ही लोग करेंगे उसका इच्छानुसार इस्तेमाल
और धीमें पड़ते ही लंबे हो जायेंगे दर्द ,
धीमा पडना अफोर्ड नहीं किया जा सकता
कि धीमा पडना एक किस्म की हार है
एक किस्म की नकारात्मकता
ये वक्त जानता है ,
वक्त पर भरोसा जरुरी है
वक्त का डर भी
ये जानना भी दिलचस्प होगा
कि वक्त के दीर्घ दस्तावेजों का इतिहास चोटिल है
उसमें दर्ज हैं अनगिनत लहू के छींटे ढेरों बोझिल किस्से
और अनंत रूदन,
वक्त सुखों का भी हिसाब रखता है
विजय और पराजय का भी
साथ ही सधे असधे प्रेम का भी,
वक्त से शत्रुता ठीक नहीं
मित्रता भी नहीं
वक्त तटस्थता की वस्तु है
उसे उसी चश्मे से देखें।

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