देगों में उबलते शोरबे की सी नमकीनियत और लज्जत से भरा ये मौसम
धूप की अठखेलियों के भ्रम में कभी
कुनकुनाहट में बदल जा रहा है
तो कभी बूंदों में,
धूप की अठखेलियों के भ्रम में कभी
कुनकुनाहट में बदल जा रहा है
तो कभी बूंदों में,
कोपलों का फूटना मुल्तवी हुआ जा रहा है
और थमक जा रही हैं बीजों की सिल्लियां चटकने से पहले,
और थमक जा रही हैं बीजों की सिल्लियां चटकने से पहले,
मन बुरांश हुआ चाहता है और हो जाता है गुलाब
कि अरमानों की पंखुड़ियों को झडते वक्त नहीं लगता,
कि अरमानों की पंखुड़ियों को झडते वक्त नहीं लगता,
ऐसे में कहो कैसे तुम्हें थिर रखूं
कि जो हर बार मौसमों की करवट हो जाते हो तुम।
कि जो हर बार मौसमों की करवट हो जाते हो तुम।
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