Tuesday 21 January 2020

रक्तवर्णी

फलक पर चाँद की टूटी हुयी सी हिचकियों ने
गज़ब का शोर ओ हंगामा मचा रक्खा था कबसे
सितारे भागते फिरने लगे थे
हिचकियाँ थाम लें ....रुक जाए इतना शोर जो बादल को भी चुभने लगा है,
कि जो बारिश हुयी तो फिर धरा उन्मत्त होगी
कि जो फाहे गिरे तो चाह फिर उन्मुक्त होगी ,
फलक ने चाँद को चूमा ज़रा सा
कि फिर चन्दा ने पी ली अंजुरी भर लालिमा
और इस तरह फिर दिन ढला
खामोशियों सा रक्तवर्णी |

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