Tuesday 21 January 2020

दस्तक

आज सुबह की दस्तक उदासी की है
एक दस्तक आशंका की थी
फिर कुछ अनिश्चय की
अंततः विदा की,
विदा ऐसी कि जो कभी न हुई
विदा ऐसी कि जो हो ही न सकी,
कि कोई स्मृति इस कदर जरूरी होती है
जिस कदर जरुरी होती है रात
जिस कदर जरुरी होती है उम्मीद
जिस कदर जरुरी होते हैं स्वप्न
या जिस कदर जरुरी होती है नींद
और मुस्कान,
मेरे लिए तुम उतनी ही जरुरी हो
कि लगता है जैसे कहीं गयी ही नहीं हो।

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