Tuesday 21 January 2020

विद्रोह

चीखना मत
चीखना आसान है
प्रतिरोध आसान है
रोना भी आसान है
कि हर दर्द को अब बस साधना है
सहेजना है,
उन्हें एकत्रित होने दो
जब तक वो छलकने न लगे
फिर घोंट दो गाढा
और अब गढो नश्तर
सबसे नुकीले सबसे जहरीले
कि एक ही वार में काम तमाम,
इन्हें पहनो कवच की तरह
और हर खतरे पर टूट पडो पूरी उर्जा से
पूरे उद्घोष के साथ
बेटियों
कि याद रखो अब रक्षक नहीं होते
कोई युगपुरुष नहीं होते
झूठी कहानियां पढना और सच मानना बंद करो,
आदर्शों ने बेटियों को लीलने की परंपरा बनाई है
और यही पुरजोर इंकार का वक्त है।

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