Tuesday, 21 January 2020

इश्क

कून मेरे हिस्से का किसी के नींद की खामोशी है
कोई होता है उस पार कि जब हम नहीं होते
हम नहीं रोते
कि जब हम नहीं खोते अपने दिन रात, अपने शब्द, अपने आंसू
कि जब कोई और इसे बगलगीर कर जी रहा होता है,
मुझे तो हर रात लिपटकर फाहे सा कोई लोरी सुना जाता है
जब जी चाहे थपकियों में सुलाता है
बिना मेरी उम्र महसूस किये
वो कोई नहीं जानता कि मैं रुमानियत की दहलीज पर हूँ
कि अब मुझे तकियों को पकडकर सोना अच्छा लगता है
कि अब मुझे धडकते सपनों में खोना अच्छा लगता है
अच्छा लगता है ठंड का उतरना नसों में मीठी आग सा
कि जब सांस चिल चिल करे और कोई एक गाना होंठों से गुजरे
दिल हूम हूम करे घबराये घन धम धम करे गरजाये
इक बूंद कभी पानी की मोरी अंखियों से बरसाये
और प्रेम मेरी आँखों से छलक पड़े,
अब गहरा नीला रंग मुझे भाने लगा है
सुंदर लगने लगी हैं तीखी नजरों वाली बेचैन भूरी आंखें
उनका दीवानावर घूरना
बेमतलब मुस्कुराना
जब तब खुद में बहकना
काफी कलर का सूट भी विथ टाई अब अच्छा लगता है
कि इस एक वक्त मोहक फूलों के बगीचे में उसके साथ की कल्पना मुझे रोमांचित करती है
कि जब मै फूलदार प्रिंट की अपनी पसंदीदा सफेद फ्राक में सहमी सी उसके सामने खड़ी हूँ
काफी समय से सहेज के रक्खा हुआ अपना एकमात्र टियारा लगाये हुये भी
कि वो कैसे तो मेरी पतली सुफेद उंगलियों को धीरे से अपनी मुट्ठियों में कसने लगता है
कि कैसे तो मेरा रंग गहराने लगता है धीरे धीरे पहले गुलाबी फिर किसी समंदर सा गाढा नीला,
देह में हिलोर है और टूटे सब्र सा कुछ
कि तभी सुनाई पड़ती है दूर कहीं घंटियों की आवाज
क्रमशः तीखी होती हुयी
कमबख़्त अलार्म
और फिर एक उसांस एक ख्वाब पर भारी हो जाती है
एक सच समूचे सोच में पसर जाती है
जखमी पर जिंदा
कि इस पार और उस पार दोनों मैं ही तो हूँ।

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