Tuesday 21 January 2020

सहिजन के फूल

सहिजन के फूलों की खटास अंतस का स्थिर भाव है अब
एक किस्म की झिलमिल उदासी कुछ लटपटाये शब्द आत्मा की मिटटी हैं
बदली भरी अंतिम दृष्टि जहां बीज
कमरे बिना हलचल के खामोश हो गए हैं कभी कभार टी वी चलती है बस
वो भी दुःख महसूस करते हैं शायद कि उन्हें भी इक आवाज़ की आदत पड़ गयी थी
सदाबहार सर्दियाँ भी अब कईयों के हिस्से में नहीं मुस्कुरातीं
उनके हिस्से में सर्दियाँ अब गर्मियों सी हैं
कोई चुपचाप कंपकंपाते हाथों को मजबूती से थामे कान की मशीन लगा लेता है
तो कोई उस ख़ामोशी को बेमतलब की हंसी में बदल देता है
गले से लिपटकर पिता के सीने को आंसुओं से तरबतर कर देने को कई बार दिल चाहता है
रोक लेती है हलकी सी एक झिझक दुःख से बचने का फिर फिर किया गया एक जतन
पता है माँ बने रहना बड़ा मुश्किल है पर बेटी बने रहना लगता है उससे भी कठिन
माएं विदा करती हैं हैं पर बेटियां खो देती हैं
वो एस टी डी कर सकती थीं हम एस टी डी या आई एस डी कुछ नहीं कर सकते
न जाने किस गुमनाम नंबर का मालिकाना है उनका
आधे बिस्तर का खालीपन सालता है, जैसे पिता का मन
जैसे आलमारियों के खाली पड़े कुछ सफ़ेद खाने
किसी की एक ख़ास महक से उसे भर दूं जी कसकता है
साड़ीयों गाउन नैपकीनो को तहा दूं दिल करता है
आधी बची शैम्पू की बोतल और एक कंघी अब तक संभालकर रखी है
इस्तेमाल नहीं कर पाती
लगता है उस पर एक स्पर्श कहीं रह गया है
और भी कुछ रह गया है
कुछ एक्सरे ,एम् आर आई और एक पूरी फ़ाइल् पर्चियों से भरी
एक व्हील चेयर
और ढेर सा खालीपन ,दुःख और अपनी हथेली पर सबसे विशिष्ट गर्माहट भरा भाव
साथ ही बेटी होने के नाज़ नखरे भरे सुख को सदा के लिए खो देने का स्थाई भाव भी |

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