किसी की खामोशी पर अपनी चुप रख दूं
किसी से दूरियों में दर्द की तलब लिख दूं
किसी के सीने में एक लकीर उकेर दूं
कि आधी सुबह उधर हो आधी रात इधर
कि आलमारी का एक पल्ला उधर खुले एक इधर
छुप छुपाकर खुरचे गयें हों कच्चे लम्हे जहाँ
चिपकाई गई हो कुछ अधूरी प्यास जहाँ
और बनाई गई हो एक नदी नीले तटों वाली
जहाँ किसी की कमसिनी एकांत का रहबर बने
कभी तो कोई खुद ही खुद के आने की खबर बने
सीली छत पर उसके नाम की कश्ती उभरे
मेरे पैरों में रेत जरा ज्यादा बिखरे ,
किसी से दूरियों में दर्द की तलब लिख दूं
किसी के सीने में एक लकीर उकेर दूं
कि आधी सुबह उधर हो आधी रात इधर
कि आलमारी का एक पल्ला उधर खुले एक इधर
छुप छुपाकर खुरचे गयें हों कच्चे लम्हे जहाँ
चिपकाई गई हो कुछ अधूरी प्यास जहाँ
और बनाई गई हो एक नदी नीले तटों वाली
जहाँ किसी की कमसिनी एकांत का रहबर बने
कभी तो कोई खुद ही खुद के आने की खबर बने
सीली छत पर उसके नाम की कश्ती उभरे
मेरे पैरों में रेत जरा ज्यादा बिखरे ,
यूं पार करें एक सफर हम अमलतासों का
यूं थमे रहें एक लम्हा अमलतासों में।
यूं थमे रहें एक लम्हा अमलतासों में।
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