एक तिनके की रात
कुछ हवाओं में घुली बात
एक आदम की जात ,
कुछ हवाओं में घुली बात
एक आदम की जात ,
ये आसमान नीला
सुनहरा सजीला
रचता है राग
केसर का बाग़
आहिस्ता आहिस्ता
करता अठखेली
वो भी अकेली
लहराती गाती
किस्से सुनाती
दरिया तक जाती
भर देती पाँव
नमक का महावर
रेतों का बिखरना
लहरों को छूना
टूट टूट रोना
बूँद बूँद प्रीत
चमकीला मीत
उचककर लपककर
आसमां की छत पर
फिर तानपूरे लाता
धुन वो सजाता
फिर गाता वो राग
कि गाता विहाग
फिर धरती ये सारी
हो जाती मौन
अकेला सा कोई
बंसखारे में घुस
सूखे हुए पत्ते सा
रात भर फडकता
नोक नोक चुभता
दर्द दर्द पीता
आह सिसकता ,
सुनहरा सजीला
रचता है राग
केसर का बाग़
आहिस्ता आहिस्ता
करता अठखेली
वो भी अकेली
लहराती गाती
किस्से सुनाती
दरिया तक जाती
भर देती पाँव
नमक का महावर
रेतों का बिखरना
लहरों को छूना
टूट टूट रोना
बूँद बूँद प्रीत
चमकीला मीत
उचककर लपककर
आसमां की छत पर
फिर तानपूरे लाता
धुन वो सजाता
फिर गाता वो राग
कि गाता विहाग
फिर धरती ये सारी
हो जाती मौन
अकेला सा कोई
बंसखारे में घुस
सूखे हुए पत्ते सा
रात भर फडकता
नोक नोक चुभता
दर्द दर्द पीता
आह सिसकता ,
हवाएं फिर आतीं
गले से लगातीं
लोरी सुनातीं
दर्द खींच उसका
खुद में मिलातीं
सुकूं से सुलातीं
और फिर से चली जातीं ,
गले से लगातीं
लोरी सुनातीं
दर्द खींच उसका
खुद में मिलातीं
सुकूं से सुलातीं
और फिर से चली जातीं ,
अगली रात आने को
प्रीत सहलाने को
दर्द निभाने को
कि एक तिनके की रात
कुछ हवाओं में घुली बात
एक आदम की जात
कि जिसका था मीत
अब है केवल गीत
जार जार रोने को
रात रात गाने को
धरती की छाती पर |
प्रीत सहलाने को
दर्द निभाने को
कि एक तिनके की रात
कुछ हवाओं में घुली बात
एक आदम की जात
कि जिसका था मीत
अब है केवल गीत
जार जार रोने को
रात रात गाने को
धरती की छाती पर |
No comments:
Post a Comment