Monday, 20 January 2020

प्रेम शहद की बूँद

प्रेम
शहद की बूँद
कि जैसे सर्दी वाली धूप
सरसों की सी मस्ती और
बरगद वाली छाँव
नन्हीं गौरया के बसते जिस पर नन्हें पाँव
ऊँगली पर उंगली कसती
और रस्ता देते खेत
दरिया जैसे बेचैनी से खुद को करता रेत
पीली सी सलवार कमीज़
मीठी सी अंगडाई
छत से जो फिसली तो पी के आंखन ठौर समाई
छन छन करती हवा उतरती सीने में कुछ ऐसे
कुछ महुआ कुछ यौवन रस का हुआ हो संगम जैसे
मिटटी भी चंदन सी लागे पोतें भर भर देह
आँखों से जल छलके जिसमे घुला मिला हो नेह
जगे सहज अनुराग
कि जैसे शीत ऋतू की आग
मेहंदी वाला रंग लिए और कच्चा सोंधा राग
दो कदमो की पूरी धडकन
आंचल की उधडी सी तुरपन
हंसी ठिठोली करते करते छू लें मन का कोर
नज़र नज़र में पूरा पढ़ लें एक दूजे का चोर
और प्रेम का रस फिर पीयें छककर एक दूजे के साथ
बरगद के पीछे छुप जाएँ हाथ में डाले हाथ
कि प्रेम चखें मीरा हो जाएँ या हो जाएँ श्याम
या फिर हों जाएँ शिव जैसे कभी न हों पर राम ,
प्रेम बसंती चादर झिलमिल
प्रेम गीत एकांत
प्रेम सुनहरा छाप तिलक
प्रेम सिंदूरी भाव फलक
प्रेम कि जैसे तानपुरे पर टीस सुनाये रात
प्रेम कि जैसे भटके वन वन नींद में आदम जात |

No comments:

Post a Comment