Tuesday, 21 January 2020

इश्क मीठा गुनाह

इश्क मीठा गुनाह ------दर्द जिनकी सज़ा ,
कि आसमानों के फ़रिश्ते दुआओं की ताब रखते
पर इश्क में सब खाक
यार से मिलन या कि बिछोह दोनों बेमानी
कि दोनों सगुण भी निर्गुण भी
इश्क में तो बस
फकीरी मलंगइ चिमटा करतल
बाज़ दफे हारमोनियम भी
ताल कभी टूटे नहीं
राग कभी छूटे नहीं
चीलम भर भर सुट्टा यार के नाम का
आधा कच्चा पौव्वा यार के नाम का
इश्क कभी मिटटी तो कभी आंसू
कभी बारिश तो कभी जादू
कभी जूनून तो कभी ----
कभी कुछ भी नहीं ,
बस अंदर बहता सोता
खदबदाता गुनगुनाता जगमगाता
कि इश्क करे और चैन भी पाए ये तो यारा नामुमकिन
कि सोते सोते रोना इसमें हँसते हँसते लुट जाना
ये तो ऐसी चादर जिसमे ढके देह भी मिट जाना ,
कि इश्क जो कर तो साधू जैसा
मन को बंजारा कर ले
यार खुदा हो यार ही साँसें
यार को तू यारा कर ले |

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