कभी ये नहीं कहा तुम खास हो
कभी धुंधली आंखों से नहीं देखा
न कभी निगाहों से सूरज पकडा
कभी बारिश की बूंदों पर होंठ नहीं धरे
न ही कभी जुगनुओं का जिक्र किया आधी रात
या चुपके से मेरी हथेली पर ही कुछ लिखा,
कभी धुंधली आंखों से नहीं देखा
न कभी निगाहों से सूरज पकडा
कभी बारिश की बूंदों पर होंठ नहीं धरे
न ही कभी जुगनुओं का जिक्र किया आधी रात
या चुपके से मेरी हथेली पर ही कुछ लिखा,
बेगम अख्तर को सुनते
या बच्चन को पढते ये लगता है
तुम झूठे हो
झूठे हो तुम
कभी नहीं किया मुझसे प्रेम
साथी।
या बच्चन को पढते ये लगता है
तुम झूठे हो
झूठे हो तुम
कभी नहीं किया मुझसे प्रेम
साथी।
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