Tuesday, 21 January 2020

बड़ी वफ़ा से

बड़ी वफ़ा से निभाई तूने हमारी थोड़ी सी बेवफाई
कि जब इसे सुनती हूँ तो लगता है कि बारिश और सर्दियों के बीच के दिनों की एक रात जिन्दा हो गयी है ....एकांत की लहक जिन्दा हो गयी है ....
कि जब इसे सुनती हूँ किसी की याद आती है ...किसकी ....नहीं बता सकती कि उससे अज़ीज़ मेरा कोई नहीं .....
कि जब इसे सुनती हूँ तो कानों में कुछ धीमे एक और धुन गुनगुनाती है " मौसम मौसम लवली मौसम ....कसक अनजानी मद्धम मद्धम ....चलो घुल जाएँ मौसम में हम " और मन मीठा हो जाता है ....
कि इसे सुनना टीस को गुनने जैसा है
कि इसे सुनना प्रेम में अहम को साधने जैसा है
कि इसे सुनना एक ग्लास पानी की प्यास है
कि इसे सुनना टूटे ईगो की आस है
इसे सुनना है शबाना आजमी का बिखरना
इसे सुनना है राजेश खन्ना का इंतज़ार
इस अपेक्षाकृत कम प्रसिद्द गाने के बहाने राजेश खन्ना को याद किया आज
ओ स्वप्न पुरुष ......तुम सा कोई नहीं |

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