Tuesday 21 January 2020

पीड़ा

पीड़ा प्रतिपल रचती राग
रीता मन
शोक मगन
धरा हो विचलित
जीवन घन
स्मृति जैसे वीणा के तार
मौन हृदय
अतुलित भार
अश्रु हो विगलित
शून्य आधार ,
गति निरंतर
भीगा अंतर
फिर फिर पीड़ा
फिर फिर अश्रु
फिर फिर मौन ।

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